( तर्ज - गुरुको देखो , अपने घटमाँही ० )
त्याग कर प्यारे , इस झुठे मनका ।
साथ कर अपने आतमका || टेक ||
भरोसे मनके , जो गोते खाये ।
न वापिस देखे फिर आये
पुरे झटकाये , माया मन भाये ।
विषयसँग नाहक भरमाये
खबर नहि उनको ,
सुख क्या संतनका । साथ कर ० ॥
गौरकर देखो , क्यों दुनिया पाई ?
प्रभूने किसकारण भाई !
बताई तुमको , हमको सबकोही ?
बिना हरिसुमरण सुख नाही
सूख पावनको , कर मन स्थिर भाई !
तभी अँखियोंमें रँग पाई
मजा खुब पावे , चढे नशा उनका ।
साथ कर ० || २ ||
कसा आसनको , लगा तार अपना । छोड़कर दुनिया का सपना ।
ध्यान धर दिलमें , उलट जमा नैना ।
चला जा चितसे अस्माना ।
भ्रमरगुंफार्मे , निर्मल कर प्राणा ।
निशाना साध वहीं रहना ।
अमर हो जावे , संग करे तिनका ।
साथ कर || ३ ||
चढ़ा पन मौनी , निर्मल धारीमें । '
सत् - चित् ' की उजियारीमें ।
ध्वनी सोहंकी , रहती है जामें
रहे मन मगन सदा तामे
कहा तुकड्याका ,
मान जरा दिलमें ।
जीव न रहे यह उलझनमें
सदा मुख पावे , मिटे मैल मनका |
साथ कर ० || ४ ||
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